दोस्तों आज बात करेंगे cars में सबसे महत्वपूर्ण break systeam की जब से cars का विकास हुआ है तब से breaking के नए नए तरीकों की खोज हो रही है।
एक महान मेकेनिकल वैज्ञानिक ने कहा है कि
ऐसा दिन कभी नही आएगा की automobile industries में विकास और अविष्कार नही होगा , निरन्तर चलता रहेगा बेधड़क।
इतिहास
जैसे जैसे मानव जाति खुद का आविष्कार कर रही थी वैसे वैसे उसको आने जाने के लिए भी तेज गति से चलने वाले साधनों की जरूरत थी जो उसके समय को बचाए।
जब इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों का अविष्कार नही था तब लोग यात्राये या बैलगाड़ी, घोड़े पर या पेदल चल कर करते थे। धीरे धीरे आविष्कार हुए मानव को बुद्धि आयी उसने आविष्कार करे।
दोस्तों अगर हम इतिहास की बात करे
कारो में पहले साइकील के जैसे ब्रेक आते थे जो रबर के बने होते थे और उन सबको एक लिवर से जोड़ा जाता था गाडी को रोकने के लिए उस लिवर को प्रेशर से दबाना होता था और गाडी तेज घर्षण के बाद रुक जाती थी । इसमें काफी ऊर्जा खर्च होती थी और बहुत समय भी लगता था गाडी की गति कम करने में।
गाडी की गति को रोकने में चमड़े के बने ब्रेक सफल नही थे क्यों की गाडी की गति जैसे जैसे बढ़ती है पुनः उसको रोकने के लिए उससे ज्यादा घर्षण बल की आवश्यकता होती थी और उसको रोकने के लिए सिर्फ चमड़ा ही काफी नही था कुछ ऐसी चीज़ की आवश्यकता थी जो गाडी को रोके भी और उसको भी कुछ नुक्सान न हो।
शुरवात में सारे ब्रेक हाथ से ही खिंच कर लगए जाते थे। और इस में काफी ऊर्जा और पावर की आवश्यकता होती थी ।
लेकिन काफी मुश्किलो के बाद 1914 में सौभाग्य से फ्रेड डुसेनबर्ग ने पहली हाइड्रोलिक रूप से संचालित होने वाली प्रणाल का आविष्कार किया।
इसके बाद हेनरी फोर्ड ने मॉडल टि ड्रम ब्रेक का अविष्कार किया जो पावो के द्वारा संचालित होते थे। ये एक केबल की सहायता से ड्रम के चारो और लिपटे होते थे जिनका उपयोग पार्किनग ब्रेक या आपातकालीन ब्रेक के लिए किया जाता था। जो भी सिर्फ केवल पीछे के टायरों में ही कार्य करता था।
सदी के अंत तक ड्रम ब्रेक सिस्टम और डिस्क ब्रेक सिस्टम का आविष्कार हो चूका था और लुइस वेन रेनॉल्ट के केबल ब्रेक सिस्टम जिसको उपयोग करने के लिए काफी ऊर्जा का इस्तेमाल करना होता था उसका अंत हो चुका था।
1 9 70 के दशक में इलेक्ट्रॉनिक्स के आगमन ने इंजीनियरों को प्रत्येक व्हील पर ब्रेक पेडल और कैलिपर या ड्रम के बीच एक हाइड्रोलिक नियंत्रण इकाई डालने की इजाजत दी, जिससे उन कोनों को व्हील स्पीड सेंसर से सिग्नल के आधार पर अलग-अलग मॉड्यूल किया जा सके।
उन पहले एबीएस सिस्टमों को अब विस्तारित किया गया है ताकि सिस्टम ट्रैक्शन और स्थिरता नियंत्रण के साथ-साथ स्वचालित क्रैश टावरेंस प्रदान करने के लिए चालक के स्वायत्त रूप से ब्रेक लागू कर सकें।
भौतिकी की व्यावहारिक वास्तविकताओं का मतलब है कि हमारे पास कभी भी एक सतत गति मशीन नहीं होगी, लेकिन आदर्श परिस्थितियों में, आज के सबसे अच्छे विद्युतीकृत वाहन ब्रेक लगने के दौरान 90 प्रतिशत की गतिशील ऊर्जा को पुनर्प्राप्त कर सकते हैं।
चाहे हम घर्षण या इलेक्ट्रॉनों पर भरोसा करते हैं, आज के ब्रेकिंग सिस्टम तेजी से स्मार्ट हो रहे हैं, एक प्रवृत्ति जो केवल आगे बढ़ती रहेगी।
गाडी को रोकने के लिए डिस्क ब्रेक (डिस्क्स) को सामान्य डिस्क और हवादार डिस्क में बांटा गया है। संक्षेप में, सामान्य डिस्क्स ठोस होते हैं। वेंटिलेट डिस्क (वेंटेड डिस्क) में वेंटिलेशन प्रभाव होता है हवा के संवहन द्वारा उत्पन्न आंदोलन में कार को संदर्भित करता है।
और केन्द्रापसारक बल। इसलिए, ठंडा करने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, यह डिस्क की विशेष संरचना पर निर्भर करता है। बाहर से, इसमें मंडल के बहुत सारे छेद हैं छेद का केंद्र, यह छेद एक विशेष प्रक्रिया (स्लॉटेड और ड्रिल) द्वारा किया जाता है। इसलिए, यह कई साधारण डिस्क कूलिंग प्रभाव से बेहतर है।
विनिर्माण प्रक्रिया और लागत की वजह से , सामान्य रूप से कक्षा कारें, आम सामने हवादार डिस्क, सामान्य डिस्क ब्रेक , लिमोसिन का हिस्सा सामने और पीछे की हवादार डिस्क में उपयोग किया जाता है। हालांकि, महंगी कारो को ज्यादातर ड्रम के बाद सामने प्लेट में उपयोग किया जाता है ब्रेक पैड।
इस समय ज्यादातर नई कारो में डिस्क ब्रेक ही होता है। कुछ बाइक ही ऐसी होंगी, जिनमें ड्रम ब्रेक होते हैं। ज्यादातर बाइक के अगले पहिए में डिस्क ब्रेक लगा होता है।
बता दें कि स्पीड को कंट्रोल करने में अगले पहिए में लगा ब्रेक करीब 70 प्रतिशत अधिक कारगर होता है, जबकि पिछला ब्रेक 30 फीसदी। अब सवाल यह उठता है कि ड्रम ब्रेक बेहतर हैं या फिर डिस्क ब्रेक। वैसे, देखा जाए तो दोनों ही तरह के ब्रेक के अपने फायदे हैं और कुछ नुकसान भी हैं।
डिस्क ब्रेक और ड्रम ब्रेक में सबसे बड़ा अंतर गर्मी में पता चलता है, जब बाइक गर्म हो रही हो। इस स्थिति में ड्रम ब्रेक जैसे ही लगाया जाता है, तो उसके ब्रेक शू के साथ फ्रिक्शन के चलते और अधिक हीट प्रोड्यूस होती है। ऐसे में ड्रम ब्रेक अधिक कारगर साबित नहीं हो पाते।
डिस्क ब्रेक और ड्रम ब्रेक में सबसे बड़ा अंतर गर्मी में पता चलता है, जब बाइक गर्म हो रही हो। इस स्थिति में ड्रम ब्रेक जैसे ही लगाया जाता है, तो उसके ब्रेक शू के साथ फ्रिक्शन के चलते और अधिक हीट प्रोड्यूस होती है। ऐसे में ड्रम ब्रेक अधिक कारगर साबित नहीं हो पाते।
वहीं डिस्क ब्रेक ऐसी स्थिति में प्रभावित नहीं होता। ब्रेक लगाते ही वह व्हील को तत्परता से रोक देता है।
बारिश में जब बाइक के व्हील पूरी तरह से गीले हो जाते हैं, उस समय ब्रेकिंग का विशेष ख्याल रखना पड़ता है। ऐसे में ड्रम ब्रेक जब लगाए जाते हैं, तब ब्रेक शू और लाइनिंग के बीच सही पकड़ नहीं बन पाती और ब्रेक अधिक कारगर तरीके से नहीं लगते।
अगर बात करें डिस्क ब्रेक की तो, इन पर बारिश का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता। जैसे ही डिस्क ब्रेक लगाए जाते हैं, वे बाइक को रोकने में कारगर साबित होते हैं।
मेंटेनेंस-
ड्रम ब्रेक को मेंटेन करना काफी मुश्किल है। इसके कई सारे छोटे-छोटे पार्ट होते हैं, जिन्हे समय-समय पर एडजस्ट करना पड़ता है। वहीं डिस्क ब्रेक को मेंटेन करना काफी आसान होता है। -ड्रम ब्रेक बहुज ज्यादा धूल इकट्ठा करते हैं। वहीं डिस्क ब्रेक में बहुत ही कम धूल इकट्ठा होती है।
मजबूती-
ड्रम ब्रेक पर मजबूत कोटिंग रहती है। लिहाजा उनके टूटने का खतरा कम रहता है। वहीं डिस्क ब्रेक पुरी तरह से खुले रहते हैं। इसलिए इनके टूटने की आशंका रहती है।
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